शायरी
दो वक़्त की रोटियों के लिए गांव छोड़ने वाला अकेला वही नहीं था।
गांव सा सुकून पूरे शहर में और कहीं नहीं था।
वो खुश था अब आराम से बीतेगी जिंदगी ईन पैसो से!
लेकिन चंद रुपयों के लिए घर बेच देना भी तो सही नहीं था ।।
शायरी
दो वक़्त की रोटियों के लिए गांव छोड़ने वाला अकेला वही नहीं था।
गांव सा सुकून पूरे शहर में और कहीं नहीं था।
वो खुश था अब आराम से बीतेगी जिंदगी ईन पैसो से!
लेकिन चंद रुपयों के लिए घर बेच देना भी तो सही नहीं था ।।
शीर्षक - पहले और अब
एक आदत थी तुमसे मिलने की,
अब एक कोशिश है बस दूर से देख लेने की।
एक आदत थी तुम्हे हर रोज़ चाहने की,
अब कोशिश है एक रोज़ भूल जाने की।
एक आदत थी तुम्हारे पास रहने की,
अब कोशिश है दूरी बनाए रखने की।
एक आदत थी खुश रहने की,
अब कोशिश है ग़म पाल लेने की।
तब लालच था सिर्फ तुम्हें पाने का ,
अब कोशिश है दुनिया जीत लेने की।