Monday 6 December 2021

काव्य

शीर्षक-पिता का हाथ

बचपन में चलना सीखने के लिए एक हाथ मेरी उँगलियाँ थामें हुए था।
वो हाथ मेरे पिता का था।

मुझे चोट लगने पर एक हाथ मेरे आंसूं पोंछ रहा था।
वो हाथ मेरे पिता का था।

ग़लत राहों पर जाने पर एक ज़ोरदार हाथ मेरे गालों पर था।
वो हाथ मेरे पिता का था।

जब परेशान था मैं, एक सहानुभूतिपूर्ण हाथ मेरे कंधों पर था।
वो हाथ मेरे पिता का था।

मैं जब भी नतमस्तक हुआ, एक हाथ मेरे सर पर आशीर्वाद का था।
वो हाथ मेरे पिता का था।

जब अकेला चला था इस दुनिया से लड़ने को एक हाथ मेरे हाथों को कसके थामे हुए था।
वो हाथ मेरे पिता का था।
वो हाथ मेरे पिता का था।

लेखक - दीवेश दीक्षित

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